१८- जन एकता की भाषा हिंदी- रचना १८
कोशिश में ही कोई कमी रह गई होगी
यूंही नहीं आंखों में नमी रह गई होगी
क्यूं नहीं आता किसी और का ख्याल
जहन में जरूर गुलामी रह गई होगी
खुदा यहीं सोचकर नए इंसान बनाता है
बांटने को कहीं पे जमीं रह गई होगी
ज़ारी है अब भी ख़ामोशी कि हुकूमत
यानी लबों पे कोई बात थमी रह गई होगी
हम इसलिए भी अब तक जिंदा है "सौरभ"
बाकी इस दिल की नीलामी रह गई होगी।
Shashank मणि Yadava 'सनम'
29-Sep-2022 03:05 PM
बहुत ही सुंदर सृजन और एकदम उत्कृष्ठ लेखन
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Saurabh Patel
29-Sep-2022 04:02 PM
जी बहुत शुक्रिया आपका
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Raziya bano
18-Sep-2022 10:39 PM
Nice
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Saurabh Patel
19-Sep-2022 07:20 AM
जी बहुत शुक्रिया आपका
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Reena yadav
18-Sep-2022 09:43 PM
👍👍
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Saurabh Patel
18-Sep-2022 10:19 PM
जी बहुत शुक्रिया आपका
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